Anarcho-environmentalism allegorised

The name Anaarkali in the present context has many meanings - Anaar symbolises the anarchism of the Bhils and kali which means flower bud in Hindi stands for their traditional environmentalism. Anaar in Hindi can also mean the fruit pomegranate which is said to be a panacea for many ills as in the Hindi idiom - "Ek anar sou bimar - One pomegranate for a hundred ill people"! - which describes a situation in which there is only one remedy available for giving to a hundred ill people and so the problem is who to give it to. Thus this name indicates that anarcho-environmentalism is the only cure for the many diseases of modern development! Similarly kali can also imply a budding anarcho-environmentalist movement. Finally according to a legend that is considered to be apocryphal by historians Anarkali was the lover of Prince Salim who was later to become the Mughal emperor Jehangir. Emperor Akbar did not approve of this romance of his son and ordered Anarkali to be bricked in alive into a wall in Lahore in Pakistan but she escaped. Allegorically this means that anarcho-environmentalists can succeed in bringing about the escape of humankind from the self-destructive love of modern development that it is enamoured of at the moment and they will do this by simultaneously supporting women's struggles for their rights.

Saturday, July 29, 2017

कथा निर्माण और संघर्ष की

मजदूरों और किसानों का संगठन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का संस्थापक कार्यकर्ता, शंकर गुहा नियोगी, एक मशहूर मुहावरा का सृजन किया था – "संघर्ष और निर्माण"। उनका आशय था कि केवल जन संघर्षों से बुनियादी सामाजिक – आर्थिक बदलाव नहीं आएगा बल्कि साथ ही वैकल्पिक विकास का ढांचा रचनात्मक कार्यों के द्वारा खड़ा करना होगा। शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आजीविका के क्षेत्र में रचनात्मक कार्यों के माध्यम से जन संगठनों को एक विकल्प तैयार करना होगा क्योंकि जन संघर्षों से यह संभव नहीं है। गुहा नियोगी एक असाधारण नेता थे और इसलिए वे छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अपने साथियों को एक साथ उच्च कोटी के संघर्ष और निर्माण करने के लिए प्रेरित कर पाये थे। उनसे प्रेरित होकर हम लोग भी खेदुत मजदूर चेतना संगठ के माध्यम से पश्चिमी मध्य प्रदेश के भील आदिवासियों के बीच बीसवी सदी के अंतिम दशक में वैसे ही करने के प्रयास किए थे। परंतु गुहा नियोगी जैसे काबिल न होने के कारण हम जन संघर्ष अधिक किए एवं निर्माण के कार्य पीछे रह गए।

सन 2001 में परिस्थितियों में व्यापक बदलाव आया। आदिवासी स्वशासन के लिए देवास जिले के उदयनगर तहसील में एक व्यापक जन आंदोलन चल रहा था जिसके तहत कई गाँव में ग्राम सभाओं द्वारा प्रशासन को दर किनार कर अपना शासन खुद चलाया जा रहा था। सरकार को लोगों की इस स्वनिर्भरता पसंद नही आई और दमनात्मक कार्यवाही कर भारी पुलिस बल का प्रयोग के द्वारा संगठन को ध्वस्त कर दिया गया। इस कार्यवाही में संगठन के चार साथी पुलिस की गोली खाकर मर गए और मुझ समेत दर्जनों कार्यकर्ताओं को जेल में ठूस दिया गया। दो माह बाद जेल से रिहा होने के बाद हमने देखा की न केवल संगठन भयावह दमन के कारण पूरी तरह से टूट चुका था बल्कि प्रमुख कार्यकर्ताओं, जिन में मैं भी शामिल था, पर संगीन अपराधों के कई सारे झूठे प्रकरण दर्ज कर दिये गए थे। क्योंकि मेरे आदिवासी साथी कार्यकर्ताओं के पास न्यायालयों में इन प्रकरणों को लड़ने के लिए जो भारी भरकम पैसों की ज़रूरत थी वह नहीं थे, इसलिए यह राशि जुटाने का काम मेरे ज़िम्मे आ गया। इसलिए मुझे जन संघर्ष का काम पूरी तरह से छोड़ कर पैसे कमाने के लिए शोधार्थी और सलाहकार के रूप में काम लेना पड़ा। इसके अलावा इन प्रकरणों को लड़ने के लिए मुझे कानून का गहरा अध्ययन करना पड़ा ताकी हमें सज़ा न हो। वकीलों के भरोसे कभी प्रकरण छोड़ नहीं सकते क्योंकि वे कई बार ठीक से लड़ते नहीं है।
कुछ वर्ष बाद सन 2005 से कई नए कानून पारित हुए, जैसे कि, सूचना का अधिकार कानून, वन अधिकार कानून, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार कानून, पंचायत कानून आदि जो लोगों को वह अधिकार प्रदान किए जिसके लिए पहले आंदोलन कर जेल जाना पड़ता था। इसके पहले के दो दशकों से चल रहे तमाम जन पक्षीय आंदोलनों से बने दबाव का ही नतीजा था कि यह प्रगतिशील कानून पारित हुये। इस प्रकार इन क़ानूनों को लागू करने का एक नया कार्यक्षेत्र का निर्माण हो गया। इसी समय मेरे आदिवासी साथियों ने मुझसे कहा की हमें हमारे द्वारा सन 1987 में पंजीकृत किया गया एक संस्था, जो की निष्क्रिय पड़ा था क्योंकि हमारे पास संघर्ष से फुर्सत ही नहीं था, को सक्रिय बनाकर उसमें अनुदान लेकर निर्माण का काम करना चाहिए। क्योंकि केवल क़ानूनों को लागू करने के लिए अनुदान जुटाना मुश्किल था इसलिए हमने शिक्षा, स्वस्थ्य, भू एवं जल संरक्षण आदि निर्माण मूलक कार्यों के लिए अधिक अनुदान मांगे और इस पर कार्य शुरू कर दिये। इस प्रकार संघर्ष के बदले हमारे लिए निर्माण प्रमुख नारा बन गया।
संस्थाओं के माध्यम से निर्माण का कार्य संपादित करने की दुनिया ऐसी है की किए गये निर्माण मूलक कार्यों के बारे मे लिखना ज़रूरी है ताकी इस के बारे में व्यापक प्रचार हो सके और आगे भी काम के लिए आवश्यक भारी अनुदान आते रहे।  मैं हमारे काम के बारे में बहुत लिखने लगा पर इस लेखन को पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित करना एक टेढ़ी खीर निकला। या तो वे हमारे लेख छापते ही नहीं थे या उनमें बहुत सारे संशोधन करवाते थे जो मुझे पसंद नहीं था। तब एक मित्र जो ब्लॉगिंग करता था, यानी इंटरनेट द्वारा वेब पर खुदके एक ब्लॉग या पत्रिका बनाकर उसमें लिखता था, मुझे भी ऐसे करने की सलाह दी। इसी प्रकार मैं भी सन 2007 में www.anar-kali.blogspot.in नामक एक वेब पत्रिका प्रकाशित करना शुरू कर दिया। यह एक बहुत अच्छा निर्णय था क्योंकि मैं हमारे काम के बारे में विस्तार से लिख पाया और यह तुरंत पूरी दुनिया के पाठकों के लिए प्रकाशित भी हो जाता था!!  विश्व भर से अनेक पाठकों से वार्तालाप और विचार विमर्श हो पाया जिससे कि हमारे काम के लिए हमें नई सोच और दिशा मिली। हम नए नए क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिये जिनमें जलवायु परिवर्तन का शमन एवं महिलाओं का प्रजनन स्वास्थ्य सब से महत्वपूर्ण है।

जल वायु परिवर्तन का शमन में हम न केवल ग्रामीण इलाकों में वन, जल व भू संरक्षण का काम किए है बल्कि हमारा इंदौर शहर स्थित कार्यालय में भी पर्यावरण संरक्षण का काम किए है ताकि कम से कम जल वायु परिवर्तन हो एवं हमें उत्पादक शारीरिक काम करने के अवसर मिले। एक प्रकल्प इस में है कार्यालय के रसोई और बगीचे के हरा कचरा को खाद बनाकर गाँव के खेतों में पहुंचाना। यह काम बहुत मेहनत का है और शारीरिक रूप से तंदुरुस्त रहने में मदद करता है जैसे कि नीचे दिये गए चित्र से स्पष्ट है।
सन 2001 के बाद की लंबी अवधि में भारतीय राज्य व्यवस्था एवं उसे चलाने वाले शासक वर्ग द्वारा आम जनता के खिलाफ चलाये जा रहे अनेकों अन्यायी मुहिमों के विरुद्ध मैं कोई जन संघर्षों में भाग नहीं लिया हूँ और इसलिए मैं पहले जैसे जेल भी नहीं गया हूँ। हमारे खिलाफ दर्ज किए गए झूटे मुक़द्दमे और कुछ अन्य जन हित याचिकाओं में मैं ज़रूर प्रकरण जीता हूँ पर किसी भी व्यापक राजनीतिक आंदोलन से जुड़ा नहीं हूँ। अधिकतर समय निर्माण मूलक कार्य और शोध में बिताया हूँ। मैंने हमारे द्वारा किए गये जल संरक्षण के कार्यों पर शोध कर एक Phd उपाधि भी हासिल कर लिया हूँ हालांकि यह भी एक नई शिक्षा ही थी क्योंकि शास्त्रीय शोध के तरीके एवं जमीनी काम के तरीकों में ज़मीन आसमान का फर्क है। यह ही एक बहुत बड़ी विडम्बना है कि आज की स्थिति में संघर्ष का काम और निर्माण का काम एक साथ करना बहुत मुश्किल है एवं संघर्ष के काम के लिए साधन जुटाना और भी मुश्किल है।
दस साल तक लगातार मैं वेब पर मेरा ब्लॉग लिखते आ रहा हूँ एवं यह लेख मेरा 500वा लेख है। इसे मैं निर्माण कथा नाम दिया हूँ क्योंकि इस दौरान मैंने वैकल्पिक विकास की दिशा में अनेक संतोषजनक प्रयोग किया हूँ। परंतु यह भी सोचकर दुखी होता हूँ कि जन संघर्ष के बिना केवल छुटपुट निर्माण मूलक कार्य से व्यापक पैमाने पर वैकल्पिक विकास एवं जन राजनीति स्थापित करना संभव नहीं है एवं जन संघर्ष की दुनिया से मैं दूर चला गया हूँ।
  

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