Anarcho-environmentalism allegorised

The name Anaarkali in the present context has many meanings - Anaar symbolises the anarchism of the Bhils and kali which means flower bud in Hindi stands for their traditional environmentalism. Anaar in Hindi can also mean the fruit pomegranate which is said to be a panacea for many ills as in the Hindi idiom - "Ek anar sou bimar - One pomegranate for a hundred ill people"! - which describes a situation in which there is only one remedy available for giving to a hundred ill people and so the problem is who to give it to. Thus this name indicates that anarcho-environmentalism is the only cure for the many diseases of modern development! Similarly kali can also imply a budding anarcho-environmentalist movement. Finally according to a legend that is considered to be apocryphal by historians Anarkali was the lover of Prince Salim who was later to become the Mughal emperor Jehangir. Emperor Akbar did not approve of this romance of his son and ordered Anarkali to be bricked in alive into a wall in Lahore in Pakistan but she escaped. Allegorically this means that anarcho-environmentalists can succeed in bringing about the escape of humankind from the self-destructive love of modern development that it is enamoured of at the moment and they will do this by simultaneously supporting women's struggles for their rights.

Saturday, July 1, 2017

वस्तु एवं सेवा कर की हकीकत

1 जुलाई 2017 से भारत में वस्तु एवं सेवा कर, जिसे अङ्ग्रेज़ी में उसके नाम के संक्षिप्त रूप में GST कहा जाता है,  लागू हो जाएगा। सरकार का दावा है कि इससे करों की वसूली काफी सरल हो जाएगा एवं देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलने के साथ साथ महंगाई एवं काले धन पर भी अंकुश लगेगा। इसलिए सरकार ने एक नारा दिया है इस नई कर प्रणाली के बारे में – "एक राष्ट्र, एक कर, एक बाज़ार"। यह जांचना आवश्यक है कि क्या हकीकत में यह सब होगा।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के विक्रय पर कर वसूलना एक गंभीर समस्या है। इन करों की वजह से महंगाई बढ़ती है और बाज़ार व्ययस्था में विकृतियाँ आती है। परंतु मुक्त बाज़ार आधारित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पूंजीवादीओं के येन केन प्रकारेन मुनाफा कमाने की होड़ के कारण बीच बीच में ही संकट पैदा हो जाता है एवं इसलिए इसे धराशायी होने से बचाने के लिए सरकार द्वारा इसे नियंत्रित करना पड़ता है।  साथ ही अर्थ व्यवस्था में मांग को बरकरार रखने के लिए सरकार को अधोसंरचना के विकास एवं सेना पर निवेश करना होता है और विभिन्न आर्थिक और सामाजिक सेवाएँ प्रदान करना होता है। इस सब के लिए करों से ही सरकारें धन जुटाती है एवं इसके लिए एक भारी भरकम नौकरशाही भी होती है।
कर दो प्रकार के होते है – प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। व्यक्तियों और व्यापारिक संस्थानों के आय पर जो कर वसूला जाता है उसे प्रत्यक्ष कर कहा जाता है जबकि देश के अंदर उत्पादित व विदेश से आयातित वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगाए गए कर को अप्रत्यक्ष कहा जाता है। आम तौर पर प्रत्यक्ष करों को प्रगतिशील कहा जाता है क्योंकि इंका बोझ अधिक आय वालों पर आनुपातिक रूप से अधिक होता है। अप्रत्यक्ष करों को सभी व्यक्तियों को समान दरों से  देना पड़ता है जब वे कोई वस्तु या सेवा को खरीदते है भले ही वे अमीर हो या गरीब और इसलिए गरीबों को अमीरों की तुलना में आनुपातिक रूप से उनके आय के एक अधिक हिस्सा अप्रत्यक्ष करों के रूप में देना पड़ता है एवं इसलिए इन्हे अप्रगतिशील कहा जाता है। इसके अलावा अप्रत्यक्ष करों के कारण महंगाई बढ़ती है व बाज़ार में विकृतियाँ आती है और इसलिए भी इन्हे प्रत्यक्ष करों की तुलना में अवांछनीय माना जाता है। परंतु क्योंकि केवल प्रत्यक्ष करों से सरकार द्वारा पर्याप्त धन नहीं जुटाया जा सकता है, विशेष कर भारत जैसे विकासशील देशों में जहां कई कारणों से प्रत्यक्ष कर देनेवालों की संख्या कम है, इसलिए अप्रत्यक्षा करों को भी लगाना पड़ता है।
स्वतन्त्रता के बाद से जैसे जैसे वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धी हुई है वैसे वैसे अप्रत्यक्ष करों का ढांचा और जटिल होते गया है क्योंकि अलग अलग वस्तुओं और सेवाओं के लिए अलग कर लगाए गए है एवम उन पर कभी छूट दिये गए है और कभी अधिभार भी लगाए गए है। भारत में स्थितियाँ और पेचीदा इसलिए हो गई है क्योंकि यहाँ एक संघीय राजनीतिक ढांचा है जिसमें केंद्र एवं राज्य सरकारों को कर लगाने के स्वतंत्र अधिकार है। इसलिए अप्रत्यक्ष करों का ढांचा अत्यंत जटिल होकर इनकी वसूली के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर दी एवं बड़े पैमाने पर करों की चोरी होने लगी। अप्रत्यक्ष करों की चोरी के कारण व्यापारिक संस्थानों द्वारा अपने आय को भी कम बताकर प्रत्यक्ष करों की भी चोरी की जाने लगी। फल स्वरूप गत दो दशकों से अप्रत्यक्ष करों का ढांचा को और सरल एवं व्यापक बनाने के कई प्रयास किए गए है एवं GST का लागू होना इस क्रम में ताज़ातरीन कदम है।
अप्रत्यक्ष करों का बुनियादी शर्त है कि चाहे वस्तुओं और सेवाओं के कितने ही विविध प्रकार क्यों न हो, इसके केवल एक या अधिकतर दो दर होने चाहिए। यह इसलिए कि जैसे ही अधिक दरें होंगें वैसे ही इन करों की वसूली पेचीदा हो जाता है एवं कौन से वस्तु या सेवा पर कितना कर लगेगा इसको लेकर राजनीतिक खींचातानी एवं कानूनी लड़ाई चलती है जिससे कि करों का प्रबंधन कठिन व महंगा हो जाता है एवं भ्रष्टाचार के लिए रास्ता प्रशस्त हो जाता है। अगर किसी समुदाय को कोई विशेष रियायत पहुंचाना है तो यह अप्रत्यक्ष करों में विविधता लाकर या छूट देकर करने के बजाय, उस समुदाय को अनुदान देकर या उसके द्वारा अदा किया गया कर को वापस भुगतान कर किया जाना चाहिए। अगर किसी वस्तु या सेवा को हतोत्साहित करना हो, जैसे कि तंबाकू उत्पाद, तो इसके लिए उस उत्पाद को बनाने वाली कंपनियों के आय पर अधिक आय कर लगाकर यह काम किया जा सकता है बजाय इसके कि उसपर अधिक अप्रत्यक्ष कर लगाए जाये। इस प्रकार रियायत या हतोत्साहन एवं उससे जुड़े रजनीती का क्षेत्र अनुदान एवं प्रत्यक्ष कर हो जाएंगे और अप्रत्यक्ष कर बिलकुल सरल एवं रजनीती विहीन होंगें। साथ ही वर्तमान में अप्रत्यक्ष करों को लेकर चल रहे कानूनी विवाद भी खत्म हो जाएंगे व इन करों के कारण बाज़ार व्ययस्था में हो रही विकृतियां भी दूर हो जायगी।
फलस्वरूप अप्रत्यक्ष करों को वसूल करने के लिए भारी भरकम नौकरशाही की ज़रूरत नहीं होगी एवं इसे प्रत्यक्षा करों की वसूली में लगाया जा सकता है। एकबार अप्रत्यक्ष कर का ढांचा एक ही दर पर होगा तो इसे सर्वव्यापी कर सभी लेन देन पर लागू किया जा सकता है भले ही कितना छोटा क्यों न हो एवं इसलिए सभी व्यापारियों एवं व्यक्तियों के पूरे कारोबार घोषित होकर उनके द्वारा देय प्रत्यक्ष कर भी पूरा का पूरा सामने आ जाएगा। इस प्रकार न केवल अप्रत्यक्ष करों की वसूली बढ़ेगी बालके प्रत्यक्ष करों की वसूली भी बढ़ जाएगी। GST की वजह से बेशक अर्थव्यवस्था को काफी फायेदा होगा क्योंकि पूरे देश में एक प्रत्यक्ष कर होगा एवं कर चोरी पूरी तरह से बंद हो जाएगा पर इसके लिए GST का केवल एक ही दर होना चाहिए।
भारत में समस्या यह है कि यहाँ न केवल अनेकों प्रकार के अप्रत्यक्ष कर है बल्कि सभी करों के अनेक दरें भी है जिसमें अनेक प्रकार के छूट व अधिभार है। इसके अलावा राजनीतिक ढांचा संघीय होने के कारण केंद्र एवं राज्य सरकारों को स्वतंत्र रूप से कर लगाने का अधिकार है। केंद्र की तुलना में राज्य सरकारों के पास कर वसूलने की शक्तियाँ कम है एवं इसलिए वे हर वक्त वित्तीय संसाधनों की कमी से जूझती रहती है। वर्तमान में सभी राज्य सरकारें भारी भरकम कर्ज के बोझ के तले डूबे हुये है व बुरी तरह से केंद्र सरकार से प्रपट अनुदानों पर निर्भर है जो बहुत देर से प्राप्त होते है। इसलिए राज्य सरकारें करीब एक दशक से GST के विरोध करते आ रहे है क्योंकि वे अपने कर वसूलने का अधिकार में कमी नहीं करना चाहते है और न ही वे केंद्र के अनुदानों पर और अधिक निर्भर होना चाहते है। फलस्वरूप अब जब GST लागू हो गया है तब राज्यों के लिए सबसे अधिक संसाधन जुटाने वाले वस्तु, खनीज़ तेल के उत्पाद, भूमी एवं शराब, के विक्रय को जीएसटी से अलग रखा गया है एवं इस पर अभी भी राज्यों द्वारा अपने हिसाब से कर लगाया जाएगा। इसके अलावा अलग अलग वस्तु एवं सेवाओं को अलग अलग वर्गों में रखकर उनपर चार अलग दरों पर कर लगाया जाना है – 5, 12, 18, 28 प्रतिशत के दर से। इसके अलावा सोना और चांदी पर 3% के दर से कर लगाया गया है एवं कुछ वस्तुओं को करों से पूर्ण रूप में छूट दी गई है। इसके अलावा कई प्रकार के अधिभार भी लगाए गए है एवं एक ही वर्ग के वस्तुओं और सेवाओं पर, उनकी कीमत या प्रकार के आधार पर अलग अलग दर के कर लगाए गए है। इस प्रकार एक राष्ट्र एक कर एवं एक बाज़ार का नारा वास्तवायित नहीं हो पाया है। GST पहले की तुलना में बेहतर ज़रूर है परंतु यह अभी भी सरल नहीं है और न ही यह वर्तमान रूप में कर चोरी को रोकने में सफल हो पाएगा। इसलिए "एक राष्ट्र एक कर एवं एक बाज़ार" का नारा हकीकत में वास्तवायित नहीं हो पाया है।
अलग अलग वस्तुओं और सेवाओं पर करों का अलग अलग दर लगाने के लिए जो प्रमुख तर्क दिया जा रहा है वो यह है कि आम जरूरतों की वस्तुओं जिसे गरीब लोग उपयोग करते है एवं अय्याशी के वस्तुओं जिसे अमीर लोग उपयोग करते है को एक ही दर से कैसे करारोपित किया जा सकता है। परंतु जैसे कि पहले बताया जा चुका है यह एक गलत तर्क है। अगर गरीबों या किसी अन्य समुदाय को रियायत पहुंचाना है तो यह अनुदान से पहुंचाना चाहिए और अमीर वर्गों से अगर अधिक कर वसूलना है तो यह उनपर अधिक आय कर लगाकर करना चाहिए। GST में अलग अलग दर रखकर उसे और जटिल बनाने से अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष करों की वसूली दोनों ही और कठिन हो जाता है एवं भ्रष्टाचार और कर चोरी को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा अधिक दरें होने के कारण बाज़ार व्यवस्था में विकृतियाँ आती है और इस प्रकार अर्थ व्यवस्था में कीमतें ऊंची रहती है।
एक दर एवं एक कर वाला GST लागू होने में एक और अड़चन है राज्यों की शंकाएँ। इस मसले को हल करने के लिए अब तक जो कर वसूलने के आंकड़े है उनका सांख्यिकी विश्लेषण कर यह पता करना चाहिए कि केंद्र और राज्य कुल कितना कर वसूलते आए है। इसके बाद एक सांख्यीकी सूत्र निकाला जा सकता है कि सभी वस्तुओं एवं करों पर केवल एक ही दर से कर अगर लगाया जाये तो वर्तमान में एकत्रित किए जा रहे कुल वित्तीय संसाधन के बराबर कर वसूलने के लिए यह दर क्या होनी चाहिए एवं एकत्रित संसाधन किस अनुपात में केंद्र एवं विभिन्न राज्य के सरकारों के बीच में आवंटित होने चाहिए। कर वसूलने का अधिकार एक स्वतंत्र निकाय को दिया जाना चाहिए जिसके संचालन की निगरानी केंद्र एवं राज्यों के प्रतिनीधिओं को मिलाकर बनी GST Council (वस्तु एवं सेवा कर परिषद) द्वारा किया जाना चाहिए ताकि राज्यों की यह शिकायत दूर हो सके कि उनका कर वसूलने का अधिकार खत्म हो रहा है एवं वे केंद्र के अनुदानों पर अत्यधिक निर्भर होते जा रहे है। वर्तमान व्यवस्था में अभी भी इसको लेकर स्पष्टता नही है कि कितने कारोबार के सीमा पर केंद्र या राज्य कर वसूलेंगे एवं इसको लेकर आगे चलकर विवाद होना तय है।  इसके अलावा यह प्रावधान भी है कि अगर किसी राज्य को GST की वजह से हानी होती है तो उसे इस हानी के लिए मुआवज़ा दिया जाएगा। यह प्रावधान इसलिए रखा गया है क्योंकि कुछ अधिक औद्योगिक उत्पादन करनेवाले राज्यों को शंका है कि GST उत्पादक के बजाय क्रेता से वसूले जाने के कारण उनकी कर वसूली कम हो जाएगी।
GST के एक समान दर का आंकलन करते वक्त यह ध्यान में रखना चाहिए कि इसके कारण जो सरल कर प्रणाली लागू होगी उसमें कर चोरी बिलकुल बंद हो जाएगी एवं इसलिए वर्तमान में हो रही प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर वसूली में भारी बढ़ोत्तरी होगी एवं इसलिए वर्तमान में GST के औसत 18% दर के बजाय 7 से 10% के बीच में दर होगा जो बहुत अधिक नहीं है एवं यह सभी वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगाया जा सकता है और कोई छूट देने की ज़रूरत नहीं है।
क्योंकि GST में अधिभार एवं छूट को लेकर करीब 8 अलग अलग दरें है इसलिए इनकी वसूली के लिए एक जटिल व्यवस्था खड़ी की गई है जो कम्प्युटर एवं इंटरनेट आधारित है  जिसे Goods and Services Tax Network (GSTN) कहा जाता है। इसका मूल मंत्र यह है कि सभी लेन देन के बिल के विवरण GSTN में अनिवार्य रूप से अपलोड करना होगा ताकि कोई भी लेन देन कर रहित न हो। कर वसूलने एवं उसके अभिलेख रखने की ज़िम्मेदारी अभी व्यापारियों पर आ गया है क्योंकि वे अगर ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें उनके द्वारा खरीदी किए जाने के समय चुकाया गया कर के लिए मान्यता नहीं मिलेगी जिसे input tax credit (ITC) कहा गया है। इस नई व्यवस्था को निम्न चित्र से समझा जा सकता है।

शुरुआत के लिए हम मान लेते है की निर्माता अपने द्वारा खरीदी गयी वस्तु व सेवाओं पर GST चुकाया है एवं यह उसके द्वारा उसके उत्पाद के तय किया गया 100 रुपये के कीमत में यह शामिल है। इस पर वह 5 % GST लगाकर उत्पाद को थोक विक्रेता को 105 रुपये में बेचता है। इसके बाद थोक विक्रेता उस उत्पाद कई कीमत 120 रुपये तय करता है एवं उस पर 5 % के दर से कर लगाकर उसे 126 रुपये  में खुदरा विक्रेता को बेचता है। क्योंकि उसने निर्माता से खरीदते वक्त 5 रुपये कर दे चुका है इसलिए वह इस राशि को ITC के रूप में लेता है एवं केवल 1 रुपये कर अदा करता है। खुदरा विक्रेता उत्पाद की कीमत 160 रुपये तय करता है एवं उसपर 5 % के दर से 8 रुपये कर लगाकर उसे ग्राहक को 168 रुपये में बेचता है। क्योंकि उसने 6 रुपये कर थोक विक्रेता को दे चुका है इसलिए वह इसका आईटीसी लेता है और केवल 2 रुपये शुद्ध कर अदा करता है। ग्राहक आखिरकार पूरा कर अदा करता है। इस प्रकार न केवल सभी लोग कर अदा करते है बल्कि यह कर केवल एक बार ही अदा किया जाता है एवं एक ही वस्तु पर बार बार पूरा कर नाही लगता है और सभी लेन देन पर कर चुकाया जाकर उसका अभिलेख तैयार हो जाता है जो GSTN में अपलोड हो जाता है एवं कर भी समय पर जमा हो जाता है।
हालांकि सिद्धान्त के रूप में यह बहुत अच्छा है पर हकीकत में इसके क्रियान्वयन में कई समस्यायें है जो निम्न प्रकार है –

1. सभी वस्तुओं को सांकेतिक क्रमांक दिये गए है जिनहे उनके अङ्ग्रेज़ी नाम के संक्षिप्त रूप में HSN कहा जाता है एवं सभी सेवाओं को भी इस प्रकार सांकेतिक क्रमांक दिये गए है जिनहे उनके अङ्ग्रेज़ी नाम के अनुसार एसएसी कहा जाता है। जब किसी व्यापारी किसी अन्य व्यापारी को वस्तु या सेवा बेचता है तो उसे बिल में उस खुद के GST क्रमांक क्रेता के GST क्रमांक एवं HSN या SAC क्रमांक दर्ज करना होगा एवं यह हर अलग वस्तु और सेवा के लिए करना होगा एवं यह लिखना होगा की कितनी कीमत ली गई है और कितना कर लिया गया है।  बाद में यह सभी विवरण एकत्रित कर महीने के अंत में GSTN में अपलोड करना होगा। यह सभी अङ्ग्रेज़ी में करना होगा एवं इनके प्रारूप अभी भी तैयार किए जा रहे है। फलस्वरूप इसके लिए जो सॉफ्टवेर चाहिए वो अभी भी बने नहीं है। इसके अलावा अब तक करों के विवरण अपलोड करने के लिए केवल 34 सुविधा इकाइयों को नियुक्त किया गया है जिनहे कुल मिलकर अरबों की संख्या में विवरह अपलोड करना होगा। अभी तक अधिकतर व्यापारी अङ्ग्रेज़ी और कम्प्युटर से दूर ही रहते थे परंतु अब उन्हे ऐसे लोगों को से मदद लेनी होगी जो यह काम कर सकते है और इससे उनके खर्चे बढ़ जाएंगे। ऊपर से सारे कारोबार को GSTN में दर्ज करने का मतलब है कि अघोषित कारोबार संभव ही नहीं होगा एवं इसके लिए भी व्यापारी तैयार नहीं है!!
2. भारत में अधिकतर कारोबार उधारी पर चलता है एवं व्यापारियों को भुगतान देर से मिलता है। सब से अधिक देरी सरकारी उपक्रम करते है। परंतु एक बार बिल बन जाने के बाद किसी व्यापारी को उस बिल में दर्शाये गए उसके द्वारा लिए गए कर को सरकार को चुकाना होगा भले ही उसे क्रेता ने भुगतान नहीं किया हो। इससे भी व्यापारी के लिए खर्चे बढ़ेंगे क्योंकि उसे और अधिक पूंजी की व्यवस्था करनी पढ़ेगी।
3. क्योंकि GST के विवरण अपलोड करना एक कठिन व खर्चीला काम है इसलिए 20 लाख रुपये से कम वार्षिक कारोबार वाले व्यापारियों को GST के दाएरे से बाहर रखा गया है एवं 75 लाख तक वार्षिक कारोबार करनेवालों को केवल उन्के द्वारा घोषित कारोबार पर 1 % कर चुकाना होगा एवं उन्हे कारोबार का विवरण GSTN पर अपलोड नहीं करना होगा। इस प्रकार बहुत सारे कारोबार का विवरण जीएसटी के दाएरे में नहीं होगा एवं उसके चलते कर चोरी का रास्ता बना रहेगा। इसके अलावा 75 लाख से अधिक वार्षिक कारोबार करने वाले कंपनियों को जब वे इन छोटे कंपनियों से कारोबार करते है तब उन कंपनियों से खरीदी हुई वस्तुओं और सेवाओं के लिए कर चुकाना होगा एवं इसके लिए बिल बनाकर GSTN पर अपलोड करना होगा और बाद में इसका ITC लेना होगा। इस प्रकार कर का भार इन बड़े कंपनियों पर अधिक पड़ेगा।  
4. ITC तब ही क्रेता को मिल पाएगा जब विक्रेता सही सही लेन देन का विवरण GSTN पर अपलोड करेगा और उसका कर सरकार को चुकायगा। क्योंकि इसमें कठिनाई है इसलिए कई बार गलत विवरण अपलोड हो सकता है और बिलकुल भी अपलोड नहीं हुआ हो ऐसा भी हो सकता है। इसके कारण भी व्यापारियों को पूंजी अधिक चाहिए होगा जिससे उनके खर्चे बढ़ जाएँगे।
5. भारत में अब तक गलत बिल बनाने की परंपरा रही है कर चोरी हेतु एवं इसके साथ ही वस्तुओं के परिवहन में भी बहुत हेराफेरी होती रही है। बिल में बताया कुछ जाता है और परिवहन द्वारा भेजा कुछ और जाता है। इस को रोकने के लिए GST में ewaybill का प्रावधान किया गया है जिसके तहत किसी भी वस्तु का परिवहन के पहले उसके बिल के विवरण एवं गंतव्य आदि ewaybill के रूप में तैयार करना होगा एवं यह ewaybill एक निश्चित अवधि के लिए वैध होगा। यह भी एक पेचीदगी भारी प्रावधान है एवं क्योंकि इसमें भी अङ्ग्रेज़ी और कम्प्युटर की ज़रूरत है इसलिए व्यापारियों को परेशानी होगी एवं उनके खर्चे बढ़ेंगे।


इसलिए अगर एक ही GST दर होता तो यह सब समस्याएँ खत्म हो जाती। क्योंकि सभी वस्तुओं और सेवाओं के लिए एक दर होने से उनका वर्गीकरण करने की कोई ज़रूरत न होती और न ही विस्तारित विवरण कम्प्युटर द्वारा अपलोड करना होता। केवल एक एसएमएस से GSTN में विक्रेता का क्रमांक एवं लेन देन की राशी भेजा जा सकता है। और सभी व्यापारियो और सभी कारोबार को दर्ज किया जा सकता चाहे वो छोटे से सब्जी ठेला क्यों न चला रहा हो। और तो और लेन देन का भुगतान भी मोबाइल फोन से किया जा सकता है एवं उसी समय उस लेनदेन पर लगाए गए कर का भी भुगतान सरकार को हो सकता है। एक अति सरल और पूर्ण रूप से पारदर्शी व्यवस्था कायम हो सकता है। अतः हकीकत में GST के वर्तमान रूप में अनेक समस्याएँ है जिसके कारण शुरुआत में काफी परेशानियाँ होगी। 

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